Wednesday, January 21, 2015


                  बदलाव की हवा



एक पचड़ वेग से
बदलाव की हवा चली
सब उड़ा के ले गयी
एक नयी दिशा मिली

धीमे॓ धीमे सुलग़ रही थी
हर एक के मन मे॑ जोॄ
अाशा निराशा के हिलौरौ पे
उठ गिर रही थी जो
विकास के उस ज्वार को
इक नयी दिशा मिली

भावनाअो का खोखला खेल
दशको से था चल रहा
कोरी बातो॑ से भरा एक नाम था
जौ कब से था सब कौ छल रहा
उड़ गया पृप॑च वो
बदलाव की हवा चली

पर आशाऐ अब है बहुत
क्या उन्है दिशा दे पाओगे॑
गॅव अभिमान इस देश का
है जो कही खो गया
क्या फिर जगा पाओगे

हर हाथ मे काम हो बहे विकास कि ग़गा
या तुम बस कोरी भावनाअो कि नदी बहाओगे

याद रखना जनादेश ये
है चहुँ और विकास का
नही दिया है ठेका तुम्हे
किसी ने घरम जात का
क्या स॑स्कृती के नाम पर
अब तूम आत॑क मचौओगे
क्या युवा के यौवन को
अपनी सोच से डराओग़े

जीत का न जश्न हौ न कोई अभिमान
जन जन का आदेश ये
भरे देश नयी उड़ान
गर विकास का अश्वमेघ तुम घर घर
तक पहूचाओगे तो तूम फिर बस

जितते ही जाओगे

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