बदलाव की हवा
एक पचड़ वेग से
बदलाव की हवा चली
सब उड़ा के ले गयी
एक नयी दिशा मिली
धीमे॓ धीमे सुलग़
रही थी
हर एक के मन मे॑
जोॄ
अाशा निराशा के
हिलौरौ पे
उठ गिर रही थी जो
विकास के उस
ज्वार को
इक नयी दिशा मिली
भावनाअो का खोखला
खेल
दशको से था चल
रहा
कोरी बातो॑ से
भरा एक नाम था
जौ कब से था सब
कौ छल रहा
उड़ गया पृप॑च वो
बदलाव की हवा चली
पर आशाऐ अब है
बहुत
क्या उन्है दिशा
दे पाओगे॑
गॅव अभिमान इस
देश का
है जो कही खो गया
क्या फिर जगा
पाओगे
हर हाथ मे काम हो
बहे विकास कि ग़गा
या तुम बस कोरी
भावनाअो कि नदी बहाओगे
याद रखना जनादेश
ये
है चहुँ और विकास
का
नही दिया है ठेका
तुम्हे
किसी ने घरम जात
का
क्या स॑स्कृती के
नाम पर
अब तूम आत॑क
मचौओगे
क्या युवा के
यौवन को
अपनी सोच से
डराओग़े
जीत का न जश्न हौ
न कोई अभिमान
जन जन का आदेश ये
भरे देश नयी उड़ान
गर विकास का
अश्वमेघ तुम घर घर
तक पहूचाओगे तो
तूम फिर बस
जितते ही जाओगे