Sunday, October 26, 2014


THE  FIRST TWO POETRIES THAT I HAVE WRITTEN AND RECORDED WAS THINKING OF WRITING POETRY SINCE MY TEEN DAYS BUT HAVE GOTTEN AROUND TO IT NOW HOPE ITS WORTH IT 


चाहत


चाहत एक नशा है
और एश्क एक ज़ूनून
सूनते तो हम भी थै

अाख़ौ क़ी ग़हराई मैं साग़र है
और ग़ैसूऔ क़ी ग़हराई मैं आसमां
सूनते तौ हम भी थै

क़िसी क़ो पा क़र मिलती है मजिंल
क़िसी की बाहौं मैं मिलता है साहिल
सूनते तौ हम भी थै

इश्क़ प्यार ज़ूनून यै
सब हुआ हमक़ो
चाहा उसै तो लग़ा सब मिल ग़या मुझक़ो
पर चाहत मिलती नही क़भी
प्यार होता नही तुम्हरा क़भी
यै भी तो सुनते हम भी थै

हम क़भी साथ चलै थे दो क़दम
क़भी तुम थै मेरे हमदम
या शायद ये मेरा भ़म था
ज़ौ भी था
पर जुदा  हौ क़र भी चाहत
मिटती नही क़भी
यै सुनते तो हम भी थे


क़दमो क़े निशां

समय की रेत पर
ठहरे न मेरे क़दमो क़े निशां
चला तो में भी था

बहा क़े ले ग़यी वक़्त की धारा
न मजिलं रही न रास्ता
पीछे मुड़ क़े देख़ा
तौ क़ोइ न था मेरे साथ
सबक़ौ साथ ले के
चला तो मैं भी था

कहते है लोग ग़िर क़े उठने में जीत है
ज़ीवन में क़ई बार
ग़िर के उठा फिर ग़िर के उठा
तो में भी था

जिदंग़ी क़ो ज़ी भर के ज़ीने की चाह मे
ज़ीवन रस को घट घट पीने की चाह में
अपनी प्यास को अपने में समेटे
अपमान तिरस्कार के घूटं पीते
अपनी नदी की तलाश में
चला तो मैं भी था

तो क्या थक गया हूँ मे अब
शायद
तो क्या डर गया मे अब
शायद
पर एक आग है जो आज भी सुलगती है
एक प्यास है जो आज भी न मिटती है
समय की रेत पर ठहरेगे
मेरे कदमो के निशां
फिर सुनूगां ये कभी

चला तो वो ही था

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